भगवान शिव को जब पता चलता है तो वह दक्ष और उसके यज्ञ को नष्ट कर देते हैं। शिव सती के वियोग को नहीं सह पाते हैं और उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर यज्ञ की अग्नि में कूदकर प्राणों को त्यागने पर उन्हें हजार वर्षों तक कोयल बनने का शाप देते हैं। देवी सती कोयल बनकर हजारों वर्षों तक भगवान शिव को पुन: पाने के लिए तपस्या करती हैं। उनकी तपस्या का फल उन्हें पार्वती रूप में शिव की प्राप्ति के रूप में मिलता है। तब से कोकिला व्रत की महत्ता स्थापित होती है।
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आप चाहें तो निराहार रहकर इस व्रत को कर सकते हैं। अगर समर्थ नहीं हो तो आप एक समय फलाहार कर सकते हैं।
इस व्रत में अन्न का सेवन नहीं किया जाता है।
ஶ்ரீ லம்போ³த³ர ஸ்தோத்ரம் (க்ரோதா⁴ஸுர க்ருதம்)
कोकिला व्रत से जुड़ी कथा का संबंध भगवान शिव एवं माता सती से जुड़ा है। माता सती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक कठोर तपस्या को करके उन्हें पाया था। कोकिला व्रत कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार देवी सती ने भगवान को अपने जीवन साथी के रुप में पाया। इस व्रत का प्रारम्भ माता पार्वती के पूर्व जन्म अर्थात सती रुप से है।
व्रत के दौरान महिलाएं उपवास रखती हैं और शिव जी आरती और माता पार्वती की पूजा करती हैं।
विश्वास है कि इस व्रत को करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
साथ ही इसमें शाम की पूजा का विशेष महत्व है तो शाम के समय शिवजी की आरती करें और बाद में उन्हें भोग लगाएं। शाम की पूजा के बाद ही फलाहार करें।
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भगवान शिव को जब सती के बारे में पता चलता है तो वह यज्ञ को नष्ट कर, दक्ष के अहंकार का नाश करते हैं। सती की जिद्द के कारण प्रजापति के यज्ञ में शामिल होने तथा उनकी आज्ञा न मानने के कारण वह देवी सती को भी श्राप देते हैं, कि हजारों सालों तक कोयल बनकर नंदन वन में घूमती रहें।
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इस व्रत को निष्ठा और श्रद्धा के साथ करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है।
कोकिला व्रत मुख्य रूप से स्त्रियों द्वारा रखा जाता है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य सौभाग्य में वृद्धि प्राप्त करना और दांपत्य जीवन के सुख को पाना है। विवाहित स्त्रियां और कुंवारी read more कन्याएं दोनों ही इस व्रत को करती हैं। कोकिला व्रत करने से योग्य पति की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है और विवाह शीघ्र होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत को भी अन्य सभी व्रतों की तरह ही नियमों का पालन करते हुए रखा जाता है।